ऐसा कहा जाता है की जब दुर्योधन का जन्म हुआ था | तब महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र को दुर्योधन की हत्या करने का परामर्श दिया था | उनका कहना था की यदि आपने ऐसा नहीं किया तो आपका यह पुत्र, पुरे कुल का सर्वनाश कर देगा | लेकिन धृतराष्ट्र को महर्षि व्यास की यह बात उचित नहीं लगी | इसी का परिणाम महाभारत का युद्ध हुआ |
दोस्तों कहते है की दुर्योधन अपने मित्र कर्ण पर आँख मूंदकर भरोसा करता था | क्योंकि महाभारत में वही ऐसा शख्स था | जो दुर्योधन को पांडवो के हाथो से बचा सकता था | एक बार कम्बोज महाजनपद के राजा ने अपनी बेटी भानुमति का स्वयंवर आयोजित किया था | जिसमे दुयोधन को भी आमंत्रित किया गया था | प्रारम्भ में तो दुर्योधन जाने को तैयार नहीं हुआ | लेकिन उसे पता चला की भानुमति किसी अप्सरा से कम नहीं है तो वह तुरंत जाने को तैयार हो गया |
उसने स्वयंवर में जाकर देखा की भारतवर्ष के सभी ताकतवर राजा, राजकुमार आये है | उनमे जरासंध, रुक्मी, शिशुपाल, कर्ण और दुर्योधन भी थे | स्वयंवर के नियमो के अनुसार राजकुमारी को स्वयं अपना वर चुनना होता था | लेकिन कहते है की जब वरमाला पहनाने का समय आया तो भानुमति दुर्योधन में नजदीक से गुजर गयी | लेकिन दुर्योधन को वरमाला नहीं पहनाई |
इस अपमान को दुर्योधन सह नहीं सका | उसने कर्ण के बाहुबल से भानुमति से विवाह कर लिया और उसे लेकर हस्तिनापुर चला आया | दुर्योधन अपनी पत्नी भानुमति से बेशुमार प्रेम करता था | जब वह आखेट पर जाता था तो भानुमति को साथ लेकर जाता था | कुछ ही दिनों में कर्ण और भानुमति की भी अच्छी मित्रता हो गयी |
एक बार कर्ण अपने मित्र दुर्योधन की अनुपस्थिति में भानुमति के कमरे में चला गया और जाकर चौसर खेलने लगा | अचानक वहां दुर्योधन आ गया | कदमो की आहट सुनकर भानुमति को अहसास हो गया की दुर्योधन आ रहा है | इतने में ही वह चौसर से खड़ी हो गयी | कर्ण को लगा की भानूमती हारने की वजह से उठ गयी | उसने भानूमती का हाथ पकड़कर उसे पुनः अपने पास बैठा लिया | इससे कर्ण की भुजा में जड़ित माला टूट गयी |
तभी दुर्योधन उनके सामने आ गया | कर्ण और भानूमती ने सोचा की आज दुर्योधन हम दोनों पर शक करेगा | लेकिन उसने ऐसा नहीं किया | वह दुनिया में तीन ही व्यक्तियों पर विश्वास करता था | मामा शकुनि, सूतपुत्र कर्ण और उसकी सबसे सुन्दर पत्नी भानुमति | उसने कमरे में आकर कहा की मित्र अपनी माला संभालो और तुरंत वहां से चला गया | कुछ दन्तकथाये यह भी कहती है की कर्ण और भानूमती का रिश्ता पवित्र नहीं था | लेकिन इस बात का प्रमाण महाभारत में ना मिलने से इसे नकारा जा सकता है |
दुर्योधन का यह विश्वास देखकर कर्ण भावुक हो गया और बाद में उसने अपने मित्र से पुछा की तुमने मुझ पर शक क्यों नहीं किया | उसने कहा दुनिया में तुम्ही तो ऐसा व्यक्ति हो जिस पर मैं आँख मूंदकर विश्वास कर सकता हूँ | कर्ण ने जब यह सुना तो उसने वचन दिया की वह एक दिन पांडवो के खिलाफ इतना भयंकर युद्ध करेगा | जिसे सारा विश्व याद रखेगा |